डीडीटी 75डब्ल्यू पी

हिल (इंडिया) लिमिटेड (भारत सरकार का एक उद्यम) का प्रमुख उत्पाद है । यह गत 60 वर्षों से डी. डी. टी. की आपूर्ति के द्वारा भारत सरकार के राष्ट्रीय वेक्टर बोर्न रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एन.वी.बी.डी.सी.पी.) की आवश्यकताओं की पूर्ति करती रही है ताकि मलेरिया के रोगवाहक मच्छरों तथा रोगाणुवाहक कीटजन्य रोगों पर नियंत्रण पाया जा सके । डी. डी. टी. एक ऑर्गेनोक्लोरिन यौगिक है जिसका वर्ष 1874 में सर्वप्रथम संश्लेषण किया गया था और वर्ष 1935 में इसकी कीटनाशी क्षमता का पता लगाया गया था । डी.डी.टी. की खोज से मलेरिया वाहक मच्छरों के नियंत्रण में बहुत बड़ी सफलता प्राप्‍त हुई । डी.डी.टी. विश्व स्तर पर मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के लिए उपयोग में लाया जाने वाला प्रमुख रसायन अंत:क्षेप है । डी.डी.टी. के प्रयोग से विश्व के कई भागों में मलेरिया के प्रसार में काफी कमी आई है और यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका से मलेरिया का उन्मुलन करने वाला एक प्रमुख साधन बन गया है । अब डब्ल्यू.एच.ओ. न केवल महामारी वाले क्षेत्रों में अपितु पूरे अफ्रीका सहित मलेरिया के सतत एवं अधिक प्रसार वाले क्षेत्रों में भी इंडोर अवशिष्ट स्‍प्रे (आई.आर.एस.) के लिए डी.डी.टी. के प्रयोग इस्तेमाल की पुरजोर अनुशंसा कर रहा है । डब्ल्यू.एच.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार आई.आर.एस. के रूप में डी.डी.टी. का उपयोग किफायती साबित हुआ है, क्योंकि मलेरिया नियंत्रण संबंधी उपाय तथा डी.डी.टी. का समुचित ढंग से उपयोग करने पर स्वास्थ्य संबंधी कोई जोखिम उत्पन्न नहीं होता । स्टॉकहोम कन्वेंशन में सिर्फ जन स्वास्थ्य (रोग वेक्टर नियंत्रण) के लिए डी.डी.टी. के प्रयोग की अनुमति दी गई है ।

मलेरिया

मलेरिया प्लाज्मोडियम वंश के एक कोशीय प्रोटोजोवा के कारण फैलता है और एनोफिलीन मच्छर के जरिए व्यक्ति से व्यक्ति में इसका संचरण होता है।

मानव जाति को संक्रमित करने वाले मलेरिया परजीवी की प्रमुख जातियां निम्न है :

1.प्लाज्मोरियम फालसीपेरम, जो उष्मकटिबन्धीय अफ्रीका तथा एशिया के कुछ भागों में पाया जाता है।
2.प्लाज्मोरियम वाइवैक्स, जो मुख्यतः एशिया, दक्षिण एवं मध्य अमेरिका में पाया जाता है।

डी. डी. टी. का प्रयोग करने वाले

अफ्रीकी एवं दक्षिण एशियाई देशों वेक्‍टर बोर्न रोगों के नियंत्रण के उद्देश्‍य से डी. डी. टी. का उपयोग कर रहे हैं ।

डी. डी. टी. की मुख्य विशेषताएं

पी. पी. डी. डी. टी. का आई यू पी ए सी नामः 1.11-ट्राइक्लोरो-2, 2-बिस, (4-क्लोरोफिनाईल) इथेनऑफ-ओ.पी.डी.डी.टी.: 1,1,1- ट्राइक्लोरो-2- (2-क्लोरोफिनाईल) -2-4-(क्लोरोफिनाईल) इथेनः मिश्रण का : 1,1,1-ट्राइक्लोरो-2,2=बिस (क्लोरोफिनाईल) इथेन, संघटन : मुख्य संघटक पी. पी. डी. डी. टी. हैः तकनीकी उत्पाद में <30% ओ पी-डी.डी.टी., अणु भार 354.5 एम एफ सी 14 एच 9 सी 15, जवलनशीलता : तकनीकी नहीं: यह अज्वलनशील है, स्व-ज्वलनशीलता : स्व-ज्वलनशीलता नहीं, विस्फोटक नहीं माना जाताः विस्फोटक गुण, ऑक्सीकरण गुण : इस उत्पाद को ऑक्सीकरण गुण : इस उत्पाद को ऑक्सीकरक पदार्थ नहीं माना जाता है, उपयोग अवधि सम्बन्धी दावा : विनिर्माण की तारीख से 2 साल (24 महीने), विष विज्ञान : तीक्षण मुख ग्राह्य एल डी50<200 मि. ग्रा./कि. ग्रा. बी. डब्ल्यू., चिरकालिक विषाक्तता-अकैंसरजनी, उत्परिवर्तनजनी।

क्रियाविधि

डी. डी. टी. 75 डब्ल्यू. पी. की क्रियाविधि तीन तरीके से होती है।
1.सम्पर्क 
2.अमाश्य
3.उर्जित प्रतिकर्शी

क्रियाविधि

डी. डी. टी. 75 डब्ल्यू. पी. में दीर्घकालिक अवशिष्टर गुण पाया जाता है। डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. का उपयोग घर के अन्दर मच्छरों के आंतरिक विश्रामस्थल पर किया जाता है। क्रिस्टलीय निक्षेेप से स्प्रे संंस्पेंषन का प्रयोग सतह पर किए जाने क परिणामस्वरूप रोगवाहक मच्छर कीटनाशी पदार्थ की घातक मात्रा ग्रहण कर लेते हैं। डी.डी.टी.75 डब्ल्यू. पी. का मच्छरों पर उर्जित प्रतिकर्शी प्रभाव भी पाया जाता है। दीवारों पर डी.डी.टी. के छिड़काव का अतिरिक्त लाभ यह होता है कि मच्छर अन्दर प्रवेश नहीं कर पाते हैं।

डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. का छिड़काव कहां किया जाए

उन सभी सतहों पर छिड़काव अवश्य किया जाना चाहिए जहां मच्छर विश्राम करते हैं। सामान्य तौर पर दीवारों, छत तथा ओलती पर छिडकाव पर्याप्त होता है। बाहरी दीवारों पर छिड़़काव पर छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए।

छिड़काव कब किया जाए

छिड़़काव का काम प्रायः किया जाता है जब रोगवाहक मच्छरों की संख्या में बढोतरी हो रही होती है और मलेरिया का प्रसार पूर्ण गति से नहीं हो रहा होता है।

डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. का छिड़काव चक्र

डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. सामान्य तौर पर 6 महीने या अधिक अवधि तक प्रभावी रहती है जो स्थानीय जलवायु तथा छिड़काव वाली सतह की स्थिति पर निर्भर करता है। जिन स्थानों पर पूरे वर्ष मलेरिया के प्रसार की संभावना रहती है उन स्थानों पर प्रति वर्ष 2 बार इसका छिड़काव पर्याप्त होता है।

प्रयोग की विधि

डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. का इस्तेमाल इसे जल में मिला कर आई आर एस के रूप में किया जाता है और इसके लिए हस्तचालित कम्प्रेषन स्प्रेयर, जिसमें 8002 फ्लेट फैन नोजल लगा होता है, का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग 40 पी एस आई दबाव पर किया जाता है। एक बाल्टी मे डी.डी.टी. 75 डब्ल्यू.पी. तथा जल की अपेक्षित मात्रा लेते हैं और एक छड़ से लगभग एक मिनट तक तेजी से हिलाते हैं जिससे स्प्रे पम्प के लिए संस्‍‍पेंशन तैयार हो जाता है। छत से फर्श तक इसका उपयोग ऊपर से नीचे की ओर किया जाता है। पार्श्‍व मार्गों तथा छत से फर्श तक इसका उपयोग नीचे से ऊपर की ओर किया जाता है।

बचाव हेतु संरक्षी आवरण

संंस्‍पेंशन तैैयार करने और छिड़़काव करने के पहले छिड़काव करने वालेे कामगारों को अपना शरीर पूरी तरह ढक लेना चाहिए, ऐप्रन, चौडी पट्टी वाली टोपी, चेहरे पर मुखोटा, चश्मा, रबड के दस्ताने तथा मजबूत जूते का प्रयोग किया जाना चाहिए।

खाली कंटेनरों का निपटान

1.पैकेेटों अथवा अधिशेष सामग्री और मशीनों से धुलाई तथा कंटेनर का निपटान सुरक्षित ढंग से किया जाना चाहिए, ताकि पर्यावरणीय प्रदूषण से बचा जा सके।
2.काम में लाये जा चुके डिब्बों को बाहर नहीं छोडा जाना चाहिए ताकि उनका उपयोग पुनः नहीं किया जा सके।
3.डिब्बों को तोड़ दिया जाना चाहिए और उन्हें निवास स्थान से दूर गाड़ दिया जाना चाहिए।

भण्डारण

1.पैकेटों को एक पृथक कमरे में ताला बन्द करके रखा जाना चाहिए तथा यह कमरा खाद्य पदार्थों भण्डारण के लिए काम में लाये जाने वाले परिसर तथा अन्य कमरो से पर्याप्त दूरी पर होना चाहिए।
2.भण्डारण किसी ठण्डे, खुश्क, सुुनिर्मित तथा सुप्रकाशित स्थान पर किया जाना चाहिए जो बड़ा हो और जिसमें खुली हवा के आने जाने की अच्छी व्यवस्था हो।

विषाक्तता के लक्षण

सिर दर्द, चक्कर आना, उबकाई एवं मितली

प्राथमिक चिकित्सा

निगल लिए जाने की स्थिति में गले के पिछले हिस्से को उत्तेजित करके वमन करवायें। यदि चर्म एवं कपडें संदुषित हो गए हों तो इसे पर्याप्त पानी एवं साबुन की सहायता से साफ कर लें। यदि आंखों में संदु्षण हो गया हो तो आंखों में 10-15 मिनट तक साधारण पानी का झौंका दें।

प्रतिविष

1.यदि यह पेट के अन्दर चला गया हो तो पेट की सफाई करके पेट को खाली कर दें। दो भाग सक्रियकृत चारकोल, एक भाग मैग्निशियम ऑक्साइड तथा एक भाग टैनिक अम्ल का इस्तेमाल 300 मि. मि. जल में करें। सामान्य विरेचक दिया जा सकता है परन्तु तैलीय विरेचक नहीं दिया जाना चाहिए।
2.ऐंठन को रोकने के लिए फिनोबारबिटोल (प्रति दिन 0.7 ग्राम तक) अथवा पेन्टोबारबिटोल (प्रति दिन 0.25 से 0.50 ग्राम दिया जाना चाहिए।
3.ऐसे किसी चीज से बचें जिससे ऐंठन हो।
4.10% कैलशियम ग्लूकोनेट का अंतः शिरा उपयोग किया जा सकता है।
5.इपीनेफ्रिन का उपयोग न करें।
6.लक्षणानुसार चिकित्सा की जाए।

पैकिंग

डीडीटी 75 डब्ल्यूपी 670 ग्राम की ट्राइलेमिनेटिड थैली में उपलब्ध है जिसे पुनः सी.एफ.बी. बक्सों/एच.डी.पी.ई. ड्रमों में अथवा खरीददारो की आवश्‍यकता के अनुरूप पैक किया जाता है।

अस्वीकरण

चूंकि इस उत्पाद का उपयोग हमारे नियंत्रण के बाहर है इसलिए हम लोग उत्पाद की समान गुणवत्ता के अतिरिक्त कोई और उत्तरदायित्व स्वीकार नहीं कर सकते।